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Kanchan Jharkhande

Abstract

5.0  

Kanchan Jharkhande

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कुछ लड़कियां श्रृंगार से अभिज्ञ

कुछ लड़कियां श्रृंगार से अभिज्ञ

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कभी कभी आँख से 

टपकता आँशु गर्म होता हैं।

जो हास् करता हैं चरम को

पोछने की कगार पर आघात 

कर चुका होता हैं।


आख़िर क्यूँ,

क्या किसी उत्पीड़न का भाव है।

या वात्सल्य का अभाव है।

कुछ लड़कियां श्रृंगार से अभिज्ञ रहती हैं।


शायद उन्हें उसका समय न मिला

बचपन से दिम्मेदारी के तले दबाया

तो कभी पक्षपात में नवाज़ा गया

वो लड़कियां जो आँखों तले

कुँए रखे बैठी हैं, 


वक़्त की लपेट में संघर्ष मय

जीवन और नन्ही सी जान लिए

दूसरों की जिंदगी को संजोते

एक वक़्त आना निश्चित हैं,


जब उन्हें स्वतंत्र होना होगा

उठाना होगा रौद्र रूप रज़िया की तरह

बनना होगा योद्धा लक्ष्मी की तरह

शिक्षित होना होगा

ज्योतिराव फुले की तरह 


एक निश्चित समय आयेगा

इस ज़मीन पर खुद का

वजूद बनाने के लिए।


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