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Dharitri Mallick

Tragedy

5.0  

Dharitri Mallick

Tragedy

मैं ढ़लते सूरज की छोटी सी किरण

मैं ढ़लते सूरज की छोटी सी किरण

2 mins
352


~१~

मैं तो ढ़लते सूरज की छोटी सी किरण..

ढ़ल जाऊंगी थोड़े ही समय में...

मुझसे कैसे बैर, शत्रुता तुम्हारा ?

मर जाने से पहले क्यों मारते हो ?

खत्म होनेसे पहले खत्म क्यों करते हो ?

~२~

क्या कसूर था मेरा ?

छोटे भाई बहन मान रही थी ..

दीदी बोलो बोल रही थी ..

क्या यही मेरी भूल थी ?

~३~

बड़ी बहन को ये हक नहीं ..

छोटे भाई बहन से बड़े होके ,

कुछ कह सके ,,,

हाँ मानती हूँ अब तुम सब,

बहुत बड़े हो चुके हो..

माफ़ कर दो अब ..

नहीं बनूँगी तुम्हारी कोई बड़ी दीदी ।।

~४~

मैं जीने की कोशिश कर रही हूँ ..

दुःख के सागर से बाहर कैसे आऊँ ?

तैरना ना जानूँ मैं फिरभी ..

तैरने की कोशिश में लगी हूँ ..

हँसती रहती हूँ , कोई आसूं ना निकले ..

आसूं जो बहेगा तो मैं " मैं " ना रहूंगी ।।

~५~

सबको कुछ नया सोच दे जाऊं ,

ईमान से विवेक जाग्रत कर सकूं ,

इस नेक कोशिश को थप्पड़ लगाया जो तुमने ..

तो पीड़ा तो होनी ही थी ...

अच्छा हुआ जो आगे का रास्ता दिखा दीया

~६~

लेकिन ये जमाना इतना अंधा बहरा है , कि ,,

किसी की पीड़ा उनको मज़ाक लगता है ।

मानो जैसे कोई मज़ेदार घटना हो ।।

~७~

यार ये बहुत हँसती क्यों हैं ?

कैसे इसे रुलाया जाये ?

जलन होती है इसकी हँसी से...

कैसे इसे चुप कराया जाये ?

तुम बेफिक्र रहो अब मैं चुप हो जाती हूँ

तुम्हारा मैदान है ये अब

खेलो जितना चाहे ख़ुशी से

~८~

खो दी तुम सब ने क्या ?

ये ना समझोगे कभी ..

दिल दिमाग मन साफ़ है जीनके ,,

हूँ मैं उन्हीं की बड़ी बहन ।।

~९~

तकलीफ मेरी और बढ़ाया बहुत तूने ...

फ़िर भी ईश्वर है ,रहेंगे साथ मेरे ..

आभारी हूँ दो तीन भाई बहन जो मिले मुझे ..

कभी किसी से वादा , छलावा ना करो तुम ..

विवेक-हीन मनुष्य से अब कैसा रिश्ता ??


( © धरित्री मल्लिक् )







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