साहस
साहस
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कदम दर कदम
चलने का साहस बटोरना
प्रवृत्ति है मेरी..
और निरन्तर इस प्रक्रिया से
झुकने की आदत में रम गई हूँ मैं...
अब जीवन के गद्य में
आँखों से काव्य झरता है
और...
विचलन की पराकाष्ठा
सुहावनी लगती है
तब मैं स्वयं कविता होती हूँ!
और दोहराती हूँ
अपनी गति को
हर यति के ठीक बाद...
यही क्रम मुझे बचाए है
सदियों से...
सदियों के लिए!