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मैं और चिम्पांजी

मैं और चिम्पांजी

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कहानी नहीं यह घटना है एक अकस्मात

लौटते लौटते हो गई थी बहुत ही रात

चीख आई एक जानवर के चिल्लाने की

पास गए तो था वो अवस्था में कराहने की।


सब छोड़ रहे थे पर मैने उसे साथ ले लिया

छोड़ देते अगर वहाँ तो कोई जानवर खा लेता

शायद घायल हुआ वो खुद ही जान गवां देता। 


दिल ना ही उसे वहाँ छोड़ने को राजी था 

वो छोटा-सा और प्यारा-सा चिंपैंजी था। 

लाया घर में और मैने मरहम पट्टी किया, 

केले छिलकर उसे खाने के लिए दिया। 


फिर ले जाकर मैने उसे जंगल में छोड़ दिया

पर वो तो फिर से मेरे पीछे पीछे ही हो लिया। 

तब से आज भी वो मेरे ही साथ साथ रहता है 

कभी दूर नहीं रहेगा उसका दिल कहता है। 


मैं हँसती हूँ वो अपनी हरकतों से हँसाता है, 

कभी मैं रुठती हूँ तो मुझे मनाने भी आता है। 

दुनिया के गम उसके साथ रहकर भुला देती हूँ, 

खुद अपने सोने से पहले मैं उसे सुला देती हूँ। 


पांच साल हो गए अब भी मेरे साथ रहता है, 

इन्सानों से भी ज्यादा मुझे वो समझता है।


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