थकान
थकान
चिलमिलाती धूप में,
चलता रहा मैं बेधड़क,
जलती मरुभूमि में भी,
पाँवों की चिंता न की।
लू की थपेड़ में,
आत्मा गयी झुलस,
खुशबुओं की चाह में,
कटाल की चिंता न की।
उम्र के सफर में,
किन्तु स्वप्न वाटिका की खोज,
एक मृगतृष्णा के जैसी,
जिसको पाना चाहता हूँ।
हूँ शिथिल, क्षतिग्रस्त,
मैं अब छाँव में किसी वृक्ष की,
आँख मूँद कुछ क्षणों को,
सुस्ताना चाहता हूँ।
धैर्य था असीम मुझमें,
ऊर्जा भरपूर थी,
शांति का दूत था मैं,
कुंठा कोसों दूर थी।
प्रेम के सागर की लहरें,
मुझ में हिंडोले मारती,
उपमा मेरे साहस की दे के,
धरती गाती आरती।
अनगिनत प्रश्नों के उत्तर,
देते-देते थक चुका,
सद्गुणों के आवरण से,
छूट जाना चाहता हूँ।
हूँ शिथिल, क्षतिग्रस्त,
मैं अब छाँव में किसी वृक्ष की,
आँख मूँद कुछ क्षणों को,
सुस्ताना चाहता हूँ।
जब चले, जैसे चले थे,
वैसे रहना अब कठिन है,
मोड़ते थे जिस हवा को,
उस में बहना अब कठिन है।
है कठिन जीवन भँवर,
पार कर पाना कठिन है,
पार कर पाए तो स्वयं को,
स्वयं ही रख पाना कठिन है।
आत्म-मूल्य की बलि,
कब तक चढ़ाऊँगी भला,
दायित्व सब इक ओर,
कर फिर मुस्कुराना चाहता हूँ।
हूँ शिथिल, क्षतिग्रस्त,
मैं अब छाँव में किसी वृक्ष की,
आँख मूँद कुछ क्षणों को,
सुस्ताना चाहता हूँ।