फूटपाथ
फूटपाथ
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एक अलग ही दुनिया है फूटपाथ की
वो नंगे पैर टायर दौड़ाते बच्चे
फटे पुराने कपड़ो में मुसुस्कुराती औरतें
और रिक्शा चलाते उनके आदमी
कपड़े के चिंदे को रेलिंग से बांधकर अपना महल सजा लेते हैं
और टूटे चूल्हे के उठते धुंए मैं पकवान बना लेते हैं
रात को वही चिंदा काम आता है पैर पसारने के
और सुबह काम आता है पसीना पौंछने के
सड़क पर दौड़ती गाडियाँ उनके महल को रोशन कर जाती हैं
और धुंए से महल को झकझोर जातीं हैं
लोग उस अनजान नगरी के सामने से निकल जातें हैं
और फूटपाथ के लोग खुश रहते हैं अपने महलो में
हर चीज़ पर मालिकाना हक जो होता है