डेमोक्रेसी और हम
डेमोक्रेसी और हम
जब वे,
घर-घर जाकर,
दीन-हीन,
भिखारियों की तरह,
माँगते थे वोट !
और,
देशहित, सुरक्षा का,
करते थे वादा !
तब हमने,
उनकी नसों में,
विष भरी सुईयाँ,
क्यूँ ना भरी !
बढ़कर उनके,
कदमों को,
क्यूँ ना रोका !
और आज,
जब वे,
जोक बनकर,
चूसते है रक्त !
अरमानों का रिसते,
है बूंद-बूंद,
तो आज हम,
डांडी मार्च करने को,
सोचते हैं ?
डेमोक्रेसी के धरातल पर,
भूकंप लाना चाहते हैं ?