शराबी
शराबी
पूछा शराबी से मैं ग़म है तुझे किस बात का,
डूबा हुआ है अब तक तू किस ख्याल में ?
ज़माने की चाल से था परेशान मैं उम्र भर ,
फसाँ हुआ था अब तक बड़े जंजाल में ।
ज़माने की बातें कहाँ कभी सुलझी है ,
अपनी ही बातों में दुनिया ये उलझी है।
इधर भी उधर भी मैं ढुुंढता जवाब था,
बन गया था अक्सर खुद ही सवाल मैं।
होश में भी होकर क्या कर लेती दुनिया ,
कहती क्या दुनिया क्या सुन लेती दुनिया।
बेहोशी में ही यारों मज़ा उस जन्नत का,
छोड़ो भी क्यों फँसे हो इस मायाजाल में।
दुनिया की बातों को समझ के ना काबिल,
जाहिल से लोग तुम कहते मुझे जाहिल।
जनाब एक अर्ज है निभ गयी है दुश्मनी तो,
छोड़ दो जैसे भी हूँ खुश हूँ फिलहाल मैं।