साया अंजाना सा
साया अंजाना सा
जाने कौन है वो
एक धुँधला सा साया
मेरा अपना ही या
है किसी और का
हर पल मेरे साथ
दौड़ता भागता
कभी थक कर
रुक जाता
कभी समेट लेता
आग़ोश में
कभी छिटक कर
दूर खड़ा हो जाता
कभी डर के
लिपट जाता है
कभी कस कर
जकड़ लेता है
कभी बाहों में
झूला देता है
और मैं कभी
उसको चाह कर
भी पकड़ नहीं पाती हूँ
बस छटपटा कर
कसमसा कर
रह जाती हूँ....।