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हमदम

हमदम

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तुम जब भी निकलते हो

घर से कहीं बाहर

चुपके से मैं

नज़र गड़ा देती हूँ तुम पर।


जाते-जाते

पलकों की नोक से

खींचकर सहेज लेती हूँ

तुम्हारे अक्स को।


बोलती हूँ, बतियाती हूँ

लजाती हूँ, झगड़ती हूँ

रोती हूँ, हँसती हूँ

रुठती हूँ और फिर

मान भी जाती हूँ।


मुझे नहीं लगता किसी पल

मैं तन्हा हूँ

मैं अकेली हूँ

बिन तुम्हारे हूँ।


तुम्हारा अक्स ही

मेरा हमदम है

मेरा हमराज़ है

मेरा सुकून है

मेरी दुनिया है

मेरे होने का मतलब है।।


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