शब्द
शब्द
शब्द कमीने शब्द बड़े हरामी
शब्दोंं की करनी पड़ी गुलामी!
शब्द नहीं तो मै गूंगा, शब्द नहीं तो बहरा
शब्द नहीं तो मै क्या ऊपर-ऊपर क्या गहरा
रोटी कपड़ा मकान नहीं तो शायद जी सकता हूँ?
शब्द नहीं तो कुछ घन्टो में मर सकता हूँ!
जन्म होते ही जब तक ना रोया सबकी आंखों मे था पानी,
रोना मेरे शब्द थे रोना थी जीवित होने की निशानी
शब्द-शब्द से ही चल कर आया ज्ञान का असीम खज़ाना
शब्द ना होते तो आज का आदमी होता आदिम पुराना
फिर भी आज मैं ये कहने का दु:साहस क्यो करता हूँ?
क्यो खफा हूँ शब्दोंं की नियत पे क्यो शक करता हूँ?
शब्द वो नहीं कहते पूरा-पूरा जो मैं कहना चाहता हूँ
शब्द वो नहीं कह देते जो मै कहने से हरदम डरता
आजतक ना कह पाया कितना प्यार करता हूँ तुमसे!
चांद-तारों की झूठी बातें सुन-सुन कर उब गये तुम मुझसे
ईश्वर की बातों से ग्रंथों के अंबार भरे पड़े हैं
फिर भी ईश्वर इन सबसे बहुत दूर खड़े हैं!
उन बातों को कह दे ऐसे शब्दोंं का क्यो जनन नहीं होता?
शब्दोंं-शब्दोंं में क्या प्रेम पूर्ण भाव का सृजन नहीं होता?
क्यो शब्द मेरा साथ नहीं देते? क्यो होते हैं नाकाम?
शब्द बेवफा, शब्द बेईमान!
शब्दोंं को भी घुस्सा आया, रात दिमाग से बाहर निकले
सीने पर चढ़कर चेहरे पे मेरे अपने-अपने अर्थ उगले
बोले किसी अर्थ कोष मे शब्दोंं का अर्थ कभी बदला हैं?
प्यार अभी भी प्यारा और दहले से पहले ही नहला हैं!
तुम इन्सान हो, हरदम बदलते रहते हो
कहना कुछ होता हैं कुछ और ही कहते हो!
और सुनने वाला वो सुनाता हैं जो वो सुनाना चाहे
जो देखना हो वो नहीं हैं तो बदल लेता राहें!
दुनिया तुम मनुष्यों की मतलब की हैं सारी
आज प्यार का गीत तो कल नफरत की बिमारी
दोस्त तुम्हारा जीवन भर के लिये दोस्त नहीं रहता!
आज कहे कुछ और कल कुछ और ही कहता
प्यार करोगे जिसे उसी से घृणा भी करते हो
घृणा करते-करते सुख की आशा भी रखते हो
तुम्हारी इन बदलती बातों को मैं नहीं कह सकता हूँ!
तुम जो चाहे कहो मुझको मै तो बस सह सकता हूँ!
तुम मुझको बेईमान, बेवफा या कुछ भी कह लो
मेरी मजबूरी हैं, मै तुम्हे केवल मनुष्य ही कह सकता हूँ!