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"घर कहाँ अपना यहाँ, एक अरसे से बेघर हैं हम"

"घर कहाँ अपना यहाँ, एक अरसे से बेघर हैं हम"

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घर कहाँ अपना यहाँ, एक अरसे से बेघर हैं हम,
बेदख़ल जो किया घर ने, तब से दर बदर हैं हम 

 

ले आई जिस मोड़ पर, बेदर्द ज़िंदगी हमको आज,
राह में उस ज़िंदगी की, आज भी रहगुज़र हैं हम 

 

औरों की क्या बात करें , ख़ुद से ही शुरूआत करें,
अपना घर जलाने में, यूँ तो सबसे बेहतर हैं हम 

 

उड़ चला एक रोज परिंदा, घर से अपने दूर कहीं,
तब से लेकर अब तक हाँ, वीरान कोई शजर हैं हम

 

जज़्बात का काम क्या, जब संगदिल हैं नाम यहाँ
काँप उठे देखकर ये रूह, बेरहम इस क़दर हैं हम 

 

ख़ुद को खोया है, जब से इक हादसे में 'इरफ़ान,
अपनी ही तलाश में, ख़ुद अपने हमसफ़र हैं हम ।।

 

 


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