परदेसी चिड़िया
परदेसी चिड़िया
अरे परदेसी चिड़िया
कैसी अजीब हो तुम
शक्ल सूरत पहचानी सी
जैसे मेरे देश से आयी हो।
पर चाल ढाल वहां के नहीं
इतने पास जो बैठी हो मेरे
मैं इंसान हूँ श्रेणी में उच्च
ब्राह्मण हूँ चित और कर्म से।
रखते हैं कुछ कदम फासला
जो कोविंद नहीं हैं जात से
तुम तो चिड़िया हो छोटी सी
क्या होगा अगर पकड़ लूँ
इंसानी हवस के अधीन मैं।
वो हसीं मुझे देख मंद सी
फिर कहने लगी एक कथा
सुनो ध्यान से वेदों के धारक
यह बात सब ग्रंथो से पुरानी है।
एक राजा था प्राचीन देश का
वह सूरज चाँद का वारिस था
प्रजा थी उसकी भोली भाली
कुछ विद्वानों का वास भी था।
वो जान गाये भ्रमांड का राज
लिखी गयी एक कथा निराली
सूरज भी था चाँद भी था
कथा में अब विज्ञान भी था।
सत्ता ना थी वारिस ना था
प्रजा का नया सविधान थी वो
विद्वानों की मौत थी वो।
उद्घोष हुआ वो संत हुए थे
राज महल में जश्न हुए थे
मंदिर बने संतो के नाम
सत्ता थी अब नई कथा की।
जिसमे राजा रक्षक था
उस राजा की एक रानी थी
रानी ने एक जुगत लगायी।
सबकी जो पूजक देवी थी
उसने संतों को जन्मा था
राज पत्र में लिखा गया
अब देवी राज माता थी।
सत्ता अब देवी की थी
युवराज सत्ता का वारिस था
वो खुद को योद्धा कहता था
हज़्ज़ाओं वध किये थे उसने।
सब जंगों को जीता था
समंदर पर भी काबिज़
सौ मुल्कों का राजा था
सौ देवों की एक थी जननी
राज पात्र में नाम थे सबके।
धरती के गर्भ के अंदर
विद्वानों के अंश छुपे थे
सौ देवों का खून था वो
जिससे गर्भ की हुयी सिंचाई।
फिर एक ज्ञानी निकला था
फिर नई कथा जन्मी थी
अब चाँद भी था सूरज भी था
जननी का पर कोई जिक्र ना था।
शास्त्र लिए अब विद्वान् खड़ा था
लोहे का सीना था उसका
लोहा सब जंग जीत गया
जननी का वरदान था मुझको।
मैं चिड़िया में बदल गयी
अब मैं बीच में बस्ती हूँ
इस दुनिया और उस दुनिया के
मैंने सत्ता का पतन है देखा।
एक नहीं कई बार है देखा
मैं हिंदुस्तानी शाह भी थी
अंत समय मैं बर्मा में थी
मैं रूसी निकोलास भी थी
अपने घर में कैद ही थी
मेरे बहुत नाम हुए हैं
इन्का के आटहुआल्पा से
जर्मन के प्यारे हिटलर तक।
कितने उलझे हो वर्णभेद में
इसीलिए बस इंसान हो तुम
वरना तुम भी आज़ाद हो जाते
प्रकृति का एक भाग हो जाते।
इस दुनिया की बातें सुनते
उस दुनिया को सिखलाते।