अंधश्रृद्धा
अंधश्रृद्धा
कहो यदि सक्षम हो तो, इक कटुकसत्य दिखलाऊँ मैं ।
है कितना तुमको धर्मज्ञान, ये आज तुम्हें बतलाऊँ मैं ।
राधे-राधे गुण गाओ , जय निर्मल , आशाराम कहो ।
कुल्टा को देवी कह दो ,पाखंडी को घनश्याम कहो ।
कसमस यौवनधन,नग्नवेश ,कामुकता भरी सभाओं में ।
अब कहाँ मिलेंगे वेदमंत्र , भारत की पुण्य हवाओं में ।
भक्तवेश में नारी छूकर , जब तुमको आनंद मिले ।
बतलाओ तुम जैसों को , कैसे ना नित्यानंद मिले ।
वेदांतिस का अमिटनाद, गूँजे है वसुधा अम्बर में ।
धन्य-2 हे भक्तजनों ! तुम लिप्त पड़े आडम्बर में ।
हिंदू –हिंदू रटते पर दिल में, भगवे का सम्मान नहीं ।
छोड़ो ये झूठे शंखनाद , तुम सनातनी संतान नहीं ।
भगवा भ्रष्ट भक्तजन पाकर , सुबक रहा पंडालों में ।
शर्म गटक कर सब संरक्षक , मिल बैठे चंडालों में ।
शेष यदि मानवता तो , अब दुष्कर्मों पर शर्म करो ।
वरना अपने पापी करतल में , जलभर लो डूब मरो ।