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Sadhana Mishra samishra

Drama

4.8  

Sadhana Mishra samishra

Drama

साहित्य

साहित्य

1 min
445


प्रमाद और प्रहसन ही तो,

होता है साहित्य नहीं !

ज्वलंत प्रश्नों पर लिखना, 

क्या साहित्य का अंग नहीं !


मौन हो जो इस पर कलम,

कैसे युग का नवनिर्माण हो !

समाज को राह दिखाना,

क्या साहित्य का धर्म नहीं !

 

भक्ति काल के स्वर्णिम युग का,

अलख जगे, पुनः शंखनाद हो !

मीरा,तुलसी, सूर रसखान,

धरा पर पुनःअवतरण हो !


अहम् के अभिमान में, 

सत्य आज तार-तार हो रहा !

बिलख रहा है सत्य आज

झूठ का बोलबाला है !


लगता है कल का सूरज,

सत्य अब देखेगा नहीं !

इस समर में फिर आज,

एक दावानल सुलग रहा !


सत्य की मशाल 

सदैव दैदिप्यमान हो !

कल हम हो या न हो,

यह सदैव जलती रहे !


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