दंश
दंश
कभी कभी जमीन पर
रेंगने वाले
कीड़े के डंक भी
इतने घातक नहीं होते
जितने कि जहरीले
शब्दों के व्यंग्य बाण ।
जो इंसान के मानस पटल
पर इस तरह
अंकित हो कर उसे
अंदर ही अंदर
इस कदर
खोखला बना देते हैं
कि वह
तिल तिल कर
जलने को
मजबूर हो जाता है
एक जलती हुई
चिता के समान ।