ऐंसा कोई इंसान कहां
ऐंसा कोई इंसान कहां
हाय किसे फुर्सत यहां
पागलपन दिखाने के लिए
जी रहे हैं सब यहां
सिर्फ नाम पाने के लिए,
जिंदा कोई नजर आता नहीं
मुर्दा लाशों का ढेर
क्षण भर जी ले बंदे
वरना हो जाएगी देर
शिकवा शिकायत और
गिले रखता है तू किससे
जब तन मिट्टी हो जाएगा
तो क्या पाएगा जग से !
बनके सूरज रोशनी ला
अंधकार मिटा जगमग - जगमग धरती हो
इसीलिए तेरा जन्म हुआ
खुदा की तुझ पर रहमत हो
डरे ना अब बहू - बेटी
खत्म कर दो, मिटा दो
धरती से दरिंदों को
मिट ना जाए धरती से
बचा लो इन परिंदों को,
समझो प्रकृति का दर्द
ये ही सवारेगी हमारी जिंदगी
वही समझ सकता है
जो मिटाना आरंभ कर दे गंदगी
जो भागते हैं
वो जागते नहीं
और ना ही चाहते हैं जागना
जी ले एक पल ठहरी
फुर्सत कहां पसंद है
सबको भागना डूबे हैं
ना जाने कब से
इन रुढ़िवादी बे बुनियादी परंपराओं में
खुद मिट जा रहे हैं
कितने युवा सिर्फ इन्हे मिटाने में,
पल - पल, हर पल
जी ले ऐसा कोई इंसान कहां,
स्वर्ग - नर्क सब यहां ढूढोंगे
क्या जाकर वहां,
मौत से डर क्यों
किसने स्वयं मर के देखा है
जीवन ही ईश्वर सर्वसुख है
मरने के बाद सब अनदेखा है
खुद से हौसले भरने हैं
उड़ान भरने के लिए
जमीन ही नहीं
आसमान हासिल करने के लिए
जो डर के भाग गया
जिंदगी में कुछ न पाया,
जो लड़के मात खाया
आनंद ही आनंद पाया...।