ग़ज़ल
ग़ज़ल
1 min
6.8K
दिल कुछ दिन और जलाए रखिये
उस सितमगर से अभी निभाए रखिये।
ख़ुदा जाने कब पड़ जाए काम उनसे
क़यामत तक उनसे बनाए रखिये।
क्या पता ज़ुल्मतों के जंगल राख़ करने हो
एक शोला-सा अन्दर भड़काए रखिये।
बड़ी ही क़द्र-ओ-कीमत यहाँ है आपकी
इस भरम को कब तक सर उठाए रखिये।
जिस पे पूरे ज़माने ने लिखा हो चुग़द
उस तख्ती को गले में लटकाए रखिये।
देखिये असलियत किसी को पता न चले
दोनों सभाओं में शोर मचाए रखिये।
गेंहूं, प्याज, दालें, सब आपके हाथो में हैं
सड़ाए रखिये या के फिर चबाये रखिये।