मैं और तुम
मैं और तुम
कुछ कहना तो था तुमसे
कुछ सुनना भी था तुमसे
तुम्हारे एक ही शब्द ने
मुझे कुछ कहने न दिया !
जब सुनना ही नहीं चाहा
तो कहते ही क्या ?
अब छोड़ो भी ये कहने सुनने की कहानी
ख़तम होने को है अब ये तेरी मेरी कहानी।
न तुम मुझे समझ पाए न मैं तुम्हें जानी
दे डाली तुम्हें यूँ ही अपनी ज़िंदगानी !