इंतेज़ार
इंतेज़ार
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दिये जलाये थे जो तेरे, इस्तेक़बाल में
कुछ आँधियों में बुझ गऐ, कुछ इंतेज़ार में
आना नहीं था तो मुझे, यह पहले बताता
तेरे लिऐ न रात भर, मैं आँसू बहाता
तुझ को याद करते हुऐ, मैं सो अगर जाता
ख़्वाबों में तुझ को मिल के, मैं ख़ुश ही हो जाता
रातों को जाग कर था, इंतेज़ार ही किया
था बुझने को न बुझ सका, उम्मीद का दिया
है दिल को यह उम्मीद, कि इक रोज़ मिलेंगे
जीवन के कुछ ही पल भी, इक साथ जियेंगे