Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

इंतेज़ार

इंतेज़ार

1 min
7.1K


दिये जलाये थे जो तेरे, इस्तेक़बाल में 

कुछ आँधियों में बुझ गऐ, कुछ इंतेज़ार में 

आना नहीं था तो मुझे, यह पहले बताता  

तेरे लिऐ न रात भर, मैं आँसू बहाता   

तुझ को याद करते हुऐ, मैं सो अगर जाता 

ख़्वाबों में तुझ को मिल के, मैं ख़ुश ही हो जाता 

रातों को जाग कर था, इंतेज़ार ही किया 

था बुझने को न बुझ सका, उम्मीद का दिया 

है दिल को यह उम्मीद, कि इक रोज़ मिलेंगे 

जीवन के कुछ ही पल भी, इक साथ जियेंगे 

 


Rate this content
Log in