कशमकश
कशमकश
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एक अजीब कशमकश है
दिन गुजर रहा हैं यूं
जैसे हाथ से छूटती रेत
सिहर उठता है ह्रदय
देख बेबस मायूस पात्र
बेबस सांसों की रागिनी
न जीवन में कोई हलचल है
बैरागी मन मेरा
रेत के महल में शांति तलाशता
दूर तक मरीचिका है
फैली अशांति मन में
यौवन है ढलान पर
कुछ ही तो बसन्त देखे है
ज़िन्दगी में हर तरफ
फैला झूठ का धुँआ
सांस लेना दुस्वार है
भटकता है मन
संसार के पथरीले रास्तो पर
अजीब कशमकश है
हर खुशी खामोश है...