शेर-शायरी का दौर
शेर-शायरी का दौर
उम्र से न पूछो उसकी राह गुज़र,
उसे तो गुज़रना ही है, हमसफ़र।
हर दौर में मैं ज़िंदा हूँ, नुमाइंदों,
चाहे तो पूछ लो उड़ते हुए परिंदों से।
कब से गिन रहा हूँ मैं हर्फ़ लिखे,
अब हर मौसम बदल जाता है परिंदों से।
प्यार का मोल किसी ने ना जाना इस धरती पर,
वक़्त गुज़रते लगता है, हर शख्स जाना पहचना।
फिर ना कभी गिरेंगे इन अँखियों से आँसू
प्यास बुझाकर सब रेगिस्तान कर डाला।