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Sara Garg

Abstract

5.0  

Sara Garg

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आओ बचपन में लौट चले।

आओ बचपन में लौट चले।

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आओ बचपन में लौट चले,

यहां उत्साह था, उमंग थी,

यहां गिरते थे, उठते थे,

पर उम्मीद नहीं छोड़ते थे।


आओ बचपन में लौट चले,

यहां दोस्त थे, सिर्फ दोस्त थे,

जो रूठते थे, झगड़ते थे,

पर पल भर में मान जाते थे।


आओ बचपन में लौट चले,

यहां सुबह थी, शाम भी थी,

पढ़ाई थी, मस्ती भी थी,

और सारा जहां अपना था।


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