शायद तन्हाइयों में रहना
शायद तन्हाइयों में रहना
चला था एक ख्वाब लेकर,
के मंज़िल खुशियों की होगी,
आँख खुली, महसूस किया क्या,
ये तमन्ना कभी पूरी होगी।
जीते थे जिसके लिए,
अब उसके बिना, मर भी न पाएँगे,
पहले तो सपनो में छुप जाया करते थे,
अब हक़ीक़त से कहाँ, मुँह छुपायेंगे।
किस्मत में लिखा क्या है मेरी,
मुझे तो मज़ाक-सा लगता है,
जब भी दिखती है,
लबों पर मुस्कराहट मेरे,
मुझे ये ख्वाब-सा लगता है।
उदास रातों में,
तन्हाइयाँ भी साथ, छोड़ जाती हैं,
सोचता हूँ मिलूँगा, उससे सपनों में,
ये ऑंखें साथ छोड़ जाती हैं।
जाग कर चाँद को देखना,
अच्छा लगता था कभी,
अब उसपर दाग नज़र आता है,
शायद उसकी गलती नहीं,
वहाँ मेरे गम का, साया नज़र आता है।
तस्वीर में ज़िंदा है वो,
और मैं ज़िंदा तस्वीर बन गया,
शायद तन्हाइयों में रहना,
मेरी तक़दीर बन गया...!
शायद तन्हाइयों में रहना,
मेरी तक़दीर बन गया...!
शायद तन्हाइयों में रहना,
मेरी तक़दीर बन गया...!