वन ब्रॅकेट
वन ब्रॅकेट
फिर उसी मोड़ पर आकर,
आहत हुए हैं,
जो करता आया है आहत,
हर बार !
संकल्प लिये चलते हैं,
बदलेंगे नहीं राह को,
रोक नहीं पाते फिर भी,
अपने मन की चाह को।
अर्थ का अनर्थ करना,
आदत है दुनिया की,
दुनियाने की है कोशिश हरदम,
“वन ब्रॅकेट फॉर एवरीवन,
वन फ्रेम फॉर एवरीबडी”।
जबकि जानती है दुनिया,
पिंडे पिंडे मतिर्भिन्नः,
न तुम, न मैं,
कोई हटकर नहीं है दुनिया से।
हम भी संवाहक है,
उसी प्रवृत्ति के,
जो मूलमंत्र है दुनिया का,
“वन ब्रॅकेट फॉर एवरीवन,
वन फ्रेम फॉर एवरीबडी”।
जाँचते है स्वयं को,
उसी चौखट में ढालकर,
फिर से ढूँढ़ते है जीवनकोश के,
भूतकालिक समानार्थी शब्दों में।
अपने विधानों को,
और निकालते हैं निष्कर्ष,
भविष्य के लिए।
हम नहीं चाहते हैं,
वर्तमान में जीना,
जोड़ते हैं हर घटना को,
भूतकाल से।
क्योंकि हम पर संस्कार है,
“वन ब्रॅकेट फॉर एवरीवन,
वन फ्रेम फॉर एवरीबडी”।