पंछी
पंछी
पंछी उड़ता है आकाश में
शायद इसी आस में
कुछ तो कमी आये उसकी प्यास में
उड़ सके वो इतना ऊपर आकाश में।
पर उड़ते - उड़ते वो भी थक जाता है
लौटकर अपने घर को आता है
घर आकर एक सुकून - सा पाता है
न जाने ऐसा क्या उसे वापस खींच लाता है ?
बच्चा देख उसे खुश हो जाता है
ची - ची करता अपनी ख़ुशी जताता है
किसी स्वर्ग - सा लगता है उसे अपना घर
उस छोटे से घरौंदे में, सारा संसार बस जाता है।
चलो थोड़ा उस पंछी संग, हम भी चीख लें
परिवार के संग खुशियों में, थोड़ा हम भी भीग लें
अम्बर पर हाथ हों, धरती पर हो पाँव
जीने की इस कला को
गर सीख सकें उस पंछी से तो
हम भी सीख लें
हम भी सीख लें...।।