मज़हब के नाम पर ...
मज़हब के नाम पर ...
मज़हब के नाम पे लूटा
मज़हब के नाम पे मारा
जन्नत पाने के अभिलाषी
इंसानों ने सोनिया जन्नत को ही
दोज़ख़ बना डाला
जहाँ किलकारियाँ
गूंजा करती थी कभी
वहाँ जनाज़े उठा करते हैं
आवाज़ों में रौनक़ थी जहाँ
वहाँ सन्नाटे की रानी
चीख़ो-ओ-पुकार कर रही
कमरा वो चारपाई
ज़िंदगी जहाँ मिली थी
श्वास जहाँ चली थी
जहाँ रिश्तों की महक थी
आज वहीं
हर काफ़िर अकेला है
लाशें हैं
कुछ फटे पन्ने
कुछ बिखरी चादरें
ज़िंदगी शमशान हुई
रास्ते वीरान हुए
कुछ भी तो ना छोड़ा
ऐ खुदा
तेरे बन्दों ने
तेरे नाम की आड़ में
तेरे मंदिर मस्जिद को
तेरे बन्दों को भी ना छोड़ा
तेरे बन्दों को ना छोड़ा ..।।