तलबगार
तलबगार
तेरी ही मोहब्बत का तलबगार हूँ मैं,
तू करके तो देख असरदार हूँ मैं ।
वसीले-ए-दिल बनना चाहता हूँ मैं तेरा
रूह में घुल जाऊँ ऐसा वफ़ादार हूँ मैं।
पता नहीं फ़क़त तू ही नींदो में मेरे क्यूँ रुबरू होती है
शायद तेरी ही ज़िंदगी के हिस्से का हकदार हूँ मैं।
शहर में तेरे आ जाने दे मुझे भी कभी मिलने को
तेरी मोहब्बत की कहानी का ही किरदार हूँ मैं।
पता है 'सफ़र', मुझे भी आदत है लिखने की हर याद को,
तभी उसका ग़ालिब, कभी नाज़िर, कभी फ़ैज़ तो कभी उसका गुलज़ार हूँ मैं ।