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पहली किरण

पहली किरण

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दूर पूर्वी क्षितिज पे

पहाड़ों के आंगन में

सूर्य की पहली किरण

सिमट जाती लाली बनके।


पर्वतों को लांघकर ये

उतरती चली जाती है

धरती की गोद में

धरती बनकर मां इसकी

झुला झुलाती बांहों में

लिपट जाती इसके तन से,

सूर्य की पहली किरण

सिमट जाती लाली बनके।


तन-मन थिरकाती इसका

तेज चलती मुस्काती हवा

कंपन पैदा हो जाती

झकझोरती जब इसको हवा


कभी गर्म, कभी होती शीतल

किरणें पड़ती ऐसी बनके,

सूर्य की पहली किरण

सिमट जाती लाली बनके।



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