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किताब

किताब

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पुरानी किताबों के पन्नों - सी थी तुम,

वही भीनी - सी ख़ुशबू लिए,

कितनी मर्तबा पढ़ने के बाद भी

तुमसे मन ना भरा,

अब तो आलम ये है कि

मैं तुम्हें अपने सिरहाने में रख कर सोता हूं,

नींद ना आए तो

फिर दोबारा वही नज़्में पढ़ लेता हूं।



भरी ऑफिस में चुपके से डायरी खोलकर

तुम्हारी तस्वीर देख लिया करता हूं।

और बारिश में चाय पीते - पीते

कभी - कभी कनखियों से झांक लिया करता हूं।

मैं आज भी तुमसे उतनी ही मोहब्बत करता हूं।



तेरे ना आने के इन्तज़ार में रातें गुज़ार देता हूं

और मन भरते - भरते भी तुझसे ना भर जाए

इसलिए तुझे पन्नों में उकेर दिया करता हूं।

आज भी तुमसे शिद्दत वाली मोहब्बत कर लिया करता हूं।



इज़हार - ए - इश्क़ तो हो ना सका तुमसे कभी,

फ़िर भी तुम्हारे अक्स में

खुद को महसूस किया है मैंने।

अपनी सांसों में भी तुम्हारे जिस्म की

खुशबू को जिया है मैंने।

ख़ुदा से आज मैं एक पल का

उधार लेकर आया हूं,

दोहरा सकूं मैं वो ज़माने भर का इश्क़,

जो तुमसे अपने सपनों में मैं पूरा कर के अाया हूं।


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