मेरी माँ
मेरी माँ
देखी है मैंने माँ,
सबसे पहले,
खोलते ही इस जहां में,
आँखें अपनी।
प्यार का पहला स्पर्श,
महसूस किया है,
माँ के ही हाथों का,
कभी अपने बालों में,
तो कभी गालों पे अपने,
चुंबन का पहला मिठास,
माँ के होठों का चखा,
माथे पर अपने,
पहला झूला मेरा,
माँ की बाँहों का,
आँखें मीचे पहुँच जाती,
दूर देश परियों के,
पर माँ के लिए,
उनकी परी तो मैं ही थी,
मेरी एक मुस्कान पर,
खिल-खिल जाती माँ!
पहला लड़खड़ाता कदम मेरा,
माँ की उंगलियां थामते ही,
कोई डर नहीं रहा,
हाथों में आ गई,
जैसे जादू की छड़ी।
मेरा आइना थी माँ,
मुझे संवारती,
मेरी गलतियों को तरासती,
चिलचिलाती जहां के धूप में,
मेरे लिए छाँव जैसी माँ!
दुनियां की बुरी नज़र से,
मुझे बचाती,
साया जैसी माँ!
मेरे लिए सपने बुनती,
डोली, बारात और जीवनसाथी,
जो ख्याल रखे,
उनकी ही तरह मेरी।
जब मैं विदा हुई,
कितना रोई थी माँ!
मुझे ख़ुशी नवजीवन की,
कितना विचलित थी पर माँ!
आज मैं रम गई हूँ,
अपनी ही दुनियां में,
भूल गई हूँ मायका,
अपनी ज़िम्मेदारियों में,
लेकिन अब भी मेरी राह,
निहारती है माँ!
मुझे बुलाने के बहाने,
तलाशती है माँ!
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देखी है मैंने माँ,
सबसे पहले,
खोलते ही इस जहां में,
आँखें अपनी।
प्यार का पहला स्पर्श,
महसूस किया है,
माँ के ही हाथों का,
कभी अपने बालों में,
तो कभी गालों पे अपने,
चुंबन का पहला मिठास,
माँ के होठों का चखा,
माथे पर अपने,
पहला झूला मेरा,
माँ की बाँहों का,
आँखें मीचे पहुँच जाती,
दूर देश परियों के,
पर माँ के लिए,
उनकी परी तो मैं ही थी,
मेरी एक मुस्कान पर,
खिल खिल जाती माँ!
पहला लड़खड़ाता कदम मेरा,
माँ की उंगलियां थामते ही,
कोई डर नहीं रहा,
हाथों में आ गई,
जैसे जादू की छड़ी।
मेरा आइना थी माँ,
मुझे संवारती,
मेरी गलतियों को सुधारती,
चिलचिलाती जहां के धूप में,
मेरे लिए छाँव जैसी माँ!
दुनियां की बुरी नज़र से,
मुझे बचाती,
साया जैसी माँ!
मेरे लिए सपने बुनती,
डोली, बारात और जीवनसाथी,
जो ख्याल रखे,
उनकी ही तरह मेरी।
जब मैं विदा हुई,
कितना रोई थी माँ!
मुझे ख़ुशी नवजीवन की,
कितना विचलित थी पर माँ!
आज मैं रम गई हूँ,
अपनी ही दुनियां में,
भूल गई हूँ मायका,
अपनी ज़िम्मेदारियों में,
लेकिन अब भी मेरी राह,
निहारती है माँ!
मुझे बुलाने के बहाने,
तलाशती है माँ!