जीवन एक कला
जीवन एक कला
यह जीवन एक कला
हर कोई देखे अपने ढंग
हर कोई सोचे अपने ढंग।
मैं तो बस इतना जानू
पंचभूत से उत्पन्न होय
ब्रम्हांड- भुखंड।
विश्व की निर्माण धरा
नर और नारी
सुंदर सुशील भासे नारी।
मन को भाय
पर हाथ अस्त्र धरे
तो चंडिका कहलाय।
विर कर्तबगार नर
भासे सुशिल कुमार
जब नारी को रक्षाय।
देव बन जाय
पशु जागा जो चित्त में
दानव रूप धराय।
गज हाथी, धम्म विशाल
शेर गर्जना दूर-दूर जाय
विश्व कैसे होये पुर्ण।
वीना जिव प्रकार
मधुर गुंजन पंछियों की
जलचर करे जल विहार।
आनंद मन को अति भाय
इस लिये मोर वन में नचाय
पृथ्वी एक रूप भासे।
सुंदर परी सुकुमार
दुर्गंधी नाक न आय
सुमन जब खिल खिल जाये।
बेल पत्ती फल विश्व हरयाये
धन धान्य जीवन फुलवाये
संकोच मन का खोल।
करे चित्त विशाल
तब ही जल मे दिखे
चंद्र किरण की धार।।