नारी प्रकृति है
नारी प्रकृति है
"पुरुषत्व दिखा कोमल स्त्री पर
रख दी सारी प्रकृति मसलकर
माँ की कोख सिसकियाँ लेती
जन्म दिया कैसा दानव नर
दर्प चूर ताकत में होकर
इंसानियत का शीश झुकाते
असहायों का करते शोषण
ऐसे पुरुष नपुंसक होते
नारी तन को वस्तु समझते
कुत्सित मन के वश में होकर
पुरुषत्व दिखा कोमल स्त्री पर
रख दी सारी प्रकृति मसलकर
घर में, बाहर और विद्यालय
कहाँ सुरक्षित नन्ही बेटी
स्वप्न हजार, वक्त की बंदिश
बंधे पंख सिसकती रहती
पुरुष- प्रकृति तत्व नैसर्गिक
दोनों के अधिकार बराबर
पुरुषत्व दिखा कोमल स्त्री पर
रख दी सारी प्रकृति मसलकर.."