आग बनी तो भड़क जाऊँगी
आग बनी तो भड़क जाऊँगी
चिनगारी बनकर धधक जाऊंगी,
और आग बनी तो भड़क जाऊंगी।
पंगा ना लेना मुझे कमजोर समझके
तेरी मुठ्ठी से राख बनकर फिसल जाऊंगी।
संभल कर उड़ना अगर तू कोई परिंदा है,
खुद जलकर, जलाने का ख़्वाब जिंदा है।
वो लौ नहीं जो तेरी फूंक से बूझ जाऊंगी,
पर बूझाना भी चाहे तो और जल जाऊंगी
यकीन नहीं तो कर ले तू थोड़ी प्रतिक्षा,
अग्नि से उलझने वाले तेरी जलेगी इच्छा।
गर मेरी इच्छाओं पर आंच डाला तो,
आग के दरिया मे बहाकर ले जाऊंगी।
शांत हूँ तो क्या मेरे अंदर अब भी आग है,
इसी आग ने तुझ जैसे को बनाया खाक है।
इसलिए हवन की अग्नि ही बनके जलने दो,
तुम्हारी जलन को भी उसी में पिघलने दो।
फिर देखना मैं सुख शांति का संदेश लाऊंगी,
और अगर भड़क गई तो त्राहि त्राहि मचाऊंगी।