ग़ज़ल
ग़ज़ल
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जो अलमारी में हम अख़बार के नीचे छुपाते हैं
तो वो ही चन्द पैसे मुश्किलों में काम आते हैं ।
कभी आँखों से अश्कों का ख़ज़ाना कम नहीं होता
तभी तो हर ख़ुशी हर ग़म में हम उसको लुटाते हैं ।
दुआयें दी हैं चोरों को हमेशा दो किवाड़ों ने
कि जिनके डर से ही सब उनको आपस में मिलाते हैं ।
मैं अपने गाँव से जब शहर की जानिब निकलता हूँ
तो खेतों में खड़े पौधे इशारों से बुलाते हैं ।
ख़ुदा हर घर में रहता है वो हमको प्यार देता है
मगर हम उसको अपने घर में माँ कहकर बुलाते हैं ।
'शरद' ग़ज़लों में जब भी मुल्क़ की तारीफ़ करता है
तो बेघर और मुफ़लिस लोग सुनकर मुस्कुराते हैं ।