हमारी बीमारी
हमारी बीमारी
अस्पताल की हम कभी,
सीढियाँ ही न चढ़ते थे
बड़े परेशान थे हम के,
बीमार ही न पड़ते थे
बीमारी की राह हम,
दिन-रात तकते थे
कैंसर, टी बी, सर्दी- खांसी
पास भी न फटकते थे
बीमार न पड़ने का ग़म,
आप क्या जानेंगे
आप पर बीतेगी,
तब बात मेरी मानेंगे
वैसे बीमार पड़ना,
कोई आसान काम नहीं हैं
बीमार पड़ने से बढ़कर,
कोई इनाम नहीं हैं
ठाठ से लेटे रहो,
बिस्तर पे रात - दिन
करती हैं सेवाचाकरी
घर की "मालकीन"
बहुत दुखी होते थे,
हम तो अपने हाल पर
बीमार होना तो जैसे,
लिखा ही नहीं था अपने भाल पर
औरों की बीमारी के
जब किस्से सुना करते थे
फूटी किस्मत पर अपनी
हम आहें भरा करते थे
लेकिन एक दिन सुबह - सुबह
हमें छींक आ गई
पलभर में खबर
सारे मोहल्ले में छा गई
बड़े - बड़े फूलों के बुके हाथों में संभाले
आने लगे हमें देखने सारे पड़ोसवाले
खुश थे हम इतने कि फुले न समाए
देर से ही सही अपने भी बीमारी के दिन आए
"बधाई हो", मिश्राजी बोले,
"लगे रहो प्यारे,
दुनिया में जितने रोग हैं,
लग जाए तुम्हे सारे"
गुप्ताजी बोले,
"आप चिंता न करे,
हम पूरा जोर लगाएंगे,
बीमे के पूरे पैसे
हम शीघ्रता से दिलवाएंगे"
मिसेस वर्मा बोली,
"आप वसियत बनाइये,
भविष्य की परेशानियों से
सबको बचाइये"
पांडेजी बोले,
"कहिये, आपके कैसे हैं मिज़ाज़
अब बेड रेस्ट लीजिये,
छोड़िये ये कामकाज"
यादवजी बोले,"
जरा जल्दी ठीक हो जाइये,
तब्दिली के लिए
लन्दन या पैरिस हो आइये"
दुबेजी बोले,
"बताइये जरा आपने
डिनर में क्या खाया ?
देखे कही आपको
फ़ूड पाॅॅइज़निंग तो नहीं हो गया"
भांति- भांति के सुझावों से
जी हमारा ऊब गया
बीमार पड़ने का सारा उत्साह
सोच के दरिया में डूब गया
इसी बीच श्रीमतीजी
चाय और पकौड़े बनाके लाई
मज़े ले - लेकर खाने लगे
वे सारे हरजाई
ललचाई हुई नज़रों से
जब हमें ताकते हुए पाया
तो पुरीजी ने हमें
बड़े प्यार से समझाया
पुरीजी बोले,
"आपको डाइट करना चाहिए,
पकौड़े वगैरह तो आप
भूलकर भी न खाइये"
हौसला अफ़ज़ाई करके लौट गए
वे अपने - अपने घर
मजबूर होके देखती रही
हमारी प्यासी नज़र
हमने सोचा....
केवल छींक आने से ये हालत है
अपना तो
बीमार पड़ना ही गलत हैं...!