ज़िन्दगी
ज़िन्दगी
रोज़ नए ज़ख्म दे जाती है
रोज़ ही हमे दिलासा दे जाती है
कितना भी भाग ले तुझसे हम
ज़िन्दगी रोज़ नया सबक दे जाती है
कभी धूप है तो कभी छाँव भी है
ज़िन्दगी मेरी इतनी बुरी भी नहीं
हर रोज़ नए लोगो से मिलवाती है
कुछ किस्से नए बनवाती है
आते जाते मुझ को सीखाती है
हर दिन मुझे दुलार जाती है
कड़ी धूप में थक कर बैठ जाती हूँ
छाँव बनकर मुझे सुलाती है
रोज़ ही दस्तक देकर उठाती है मुझे
अपने रंग रोज़ दिखाती है
ये माना कि ज़िन्दगी कोई खेल नहीं
फिर भी नए खेल खिलाती है मुझे।