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कामदेव और रति की वर्तमान यात्रा

कामदेव और रति की वर्तमान यात्रा

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कॉलेज के दिनों में 
परवान चढ़ते नए नए प्यार को
जब नज़र लगती है 
तो वे प्रेमी जोड़े 
बदल लेते हैं रास्ते अपने 
यूनिवर्सिटियों में पनपने वाली
मोहब्बतें अक्सर दगाबाज़ निकलती हैं।
इनमें अक्सर 
कोई कामदेव बनता है
तो कोई रति के रूप में 
उस कामदेव को फांसता है।
कहते सुनता हूँ अक्सर मैं
ऐसे प्रेमियों को 
कि नहीं है बीच कुछ उनके
मैं सोचता हूँ
फ़िर सोचता हूँ
एक बार और 
सोचने पर मजबूर होता हूँ।
कि अगर नहीं है कुछ ऐसा
तो क्यों है परवाह किसी की 
और 
कुछ है भी 
तो हके बंदगी से 
और
अपने हर्फ और हर्ज़ों की अदायगी करते चलो
मैं पूछता हूँ उस रति से 
कि
कामदेव के रूप पर तुम मोहित हुई हो?
या
कोई कामदेव तुम्हारे रुप पर
ख़ैर 
हुआ है कोई न कोई मोहित
किसी न किसी पर
तभी चला है दौर-ए-मोहब्बत का
जिसकी रूहानियत फ़ैली है चहुँ ओर 
लोगों के मुहँ से ही सुना था कि 
मोहब्बत करने वाले डरते नहीं 
और जो डरते हैं
वो मोहब्बत करते नहीं
मैं कहता हूँ हाँ
कि थी 
और की है
शायद आगे भी करेंगे वो 
मोहब्बत 
मैं भी करूँगा 
या शायद 
हो जाएगी मुझे भी 
और 
कामदेव या रति में से एक बनना पड़ेगा मुझे भी 
मैं यह सोच कर ही 
गहन चिंतन में विचरण करने लगता हूँ
किसी हरिण की भांति 
हरे-भरे मैदानों में 
दौड़ता हूँ यहाँ से वहाँ 
कुलांचे भरता हूँ
खोजने के लिए उस रति स्वरूपा देवी को
या कामदेव को 
नहीं जानता 
लेकिन
क्योंकि मैं आदमी हूँ
जिंदादिल आदमी 
और 
आदमी ही आदमी से मोहब्बत किया करता है
और 
अपने दोस्तों से बहाना करता है
कभी कभी वह बहाना 
किसी दूसरी रति 
अथवा 
कामदेव से भी करता है
मोहब्बत है न
इसीलिए रति और कामदेव की 
उपमाएं दे रहा हूँ उन्हें
कोई रति अपने कामदेव से 
तो 
कोई कामदेव अपनी रति से मिलने के लिए
करता है इंतजार एक पूरी रात का
पूरे आठ घंटे की वो रातें
जो मोहब्बत की निशानी को
उजला नहीं बनाती 
दाग लगाती है
क्योंकि ये मोहब्बत है 
कॉलेज की
ये मोहब्बत है 
यूनिवर्सिटियों की 
मोहब्बत से मिलने वाले ये कोई 
पहले प्रेमी नहीं है।
बल्कि इनसे पूर्व के प्रेमी 
या 
उनसे पूर्व में हुए प्रेमियों पर 
या 
ओर जो नए प्रेमी आएंगे
उन सभी पर लटकी हैं तलवारें
तलवारें सत्ता की
तलवारें समाज की
तलवारें धर्म की
तलवारें जाति की 
लेकिन खुशकिस्मत हैं वो 
जिन पर नही लटकी तलवारें 
धर्म और जाति की
लेकिन फ़िर भी दो तलवारें बाकी हैं।
जिद है उनकी भी
कि काटेंगे उन तलवारों की धार को
लेकिन मैं भी देखता हूँ कैसे
क्योंकि तलवारें वे काटेंगे
और 
उपाय मुझे भी मिल जाएगा
मेरी मोहब्बत को पाने का
मोहब्बत अगर पाक़ साफ़ हो 
तो ग़ालिब नहीं डरा करते वे लोग 
कोई अंदेशा है मन में
उनके
या 
मेरे
या समाज के 
मुझे परवाह है 
उन प्रेमियों की 
उन परिंदों की 
जिन्होंने एक बार फ़िर कोशिश की है
अपने परवाजों को पंख देने की 
लेकिन ज़रा ध्यान से 
मेरे प्रेमी जोड़े-जोड़ियों 
अभी कच्चे हैं पंख तुम्हारे
अभी कोशिश न करो ज्यादा दूर जाने की 
लड़खड़ा कर गिर जाओगे
वैसे गिरकर चलना
और 
उठकर खड़े होने से ही हासिल होता है 
ज्ञान
लेकिन मोहब्बत के सिलसिले में
ये वैज्ञानिक तथ्य काम नहीं आते।
आज फिर निकली है कोई रति 
अपने कमरे से बाहर 
और 
दौड़ा चला आया है 
कामदेव भी मिलने उससे
यूँ ही किसी फ़िल्मी दुनिया सरीखी कहानी
की तरह गायब हो जाते हैं 
आजकल ये कामदेव और रति मिलते हैं 
हमेशा की तरह किन्तु एक बात 
अच्छी है देश दुनिया की चिंता से बेख़बर 
रहने लगे हैं ये अब
क्योंकि बदल लिए हैं रास्ते इन्होंने
रति और कामदेव के  बीच नहीं आ सकता कोई
जैसे पुराणों में वर्णित कामदेव के बीच नहीं आया
और 
न आज के कामदेव के बीच आएगा
पर हाँ 
काम हुआ था श्रापित 
और अनंग कहलाया
हुआ था बाहरी शरीर से मुक्त 
फिर समा गया सभी के तन, मन और बदन में
ठीक वैसे ही
समाए हैं आज के प्रेमी जोड़े
और करते हैं लेना देना 
क्योंकि कुछ के लिए मोहब्बत में
लेना देना भी जायज होता है ग़ालिब
कहते हैं वही लोग मुझसे 
कि मिलता है अनुभव एक नया
लेकिन मैं कहता हूँ
ऐसी मोहब्बतें ज्यादा नहीं चला करती
फ़िर 
कहता है कामदेव हुई है मोहब्बत 
उसे एक अर्से के बाद
रति करती है मना 
उसे नहीं हुई मोहब्बत पापी काम से
पर फ़िर भी जमाने भर की रुसवाईयाँ 
क्यों झेल जाती है? रति
शायद यह काम का आलिंगन ही है
उसे दबाए हुए
वह रूठती है 
काम मनाता है उसे 
विभिन्न नाम और उपनामों से
और यही 
रूठना मनाना ही तो आदि (प्रारम्भ) है 
उनकी मोहब्बत का 
और 
चरम है उसका रोज़ मिलन
जिसमें कामदेव और रति सरीखे 
नए और उगते हुए प्रेमी
करते हैं अकेले में आलिंगन 
हरिण हरिणी की भांति 
स्वच्छंद विचरण नहीं करते ये
क्योंकि आज का काम उसकी (रति) 
बदनामियाँ नहीं सुन सकता।
इसीलिए मनाने चला जाता है उसे
अपनी नींद की परवाह किए बिना 
सुबह सवेरे 
क्योंकि इसके बाद घेर लेती हैं
रति को उसकी सखियाँ 
काम को उसके मित्र
लगते हैं ये सभी इन दोनों को जहरीले
पर कौन जानता है? 
काम की सही मंशा 
और कौन जानता है रति की मर्यादा
उल्लंघन तो हो चुका है।
काम ने बाण चला दिया है
एक बार फिर रति के सीने पर
लेकिन इस बाण से नहीं बिंधेगा शरीर 
इस बाण से रति का रूप सौंदर्य 
निखरेगा और अधिक
मादकता से भर उठेगी वह
और एक लंबे विश्राम के बाद 
कामदेव का किसी रति से मिलन 
उसे सार्थक बनाएगा
रति पहली बार पूर्ण हो पाएगी 
अपने स्त्रीत्व को आभासित करेगा 
उसका रोम रोम
और 
कामदेव एक बार पुनः उसे 
मद और वासना में भर कर लौट जाएगा
अपने रास्ते दुनिया से बेखबर
जो शुरू हुई थी प्रक्रिया
वह इसी तरह चलेगी 
निरन्तर और कहलाएगी 
कामदेव और रति की वर्तमान यात्रा।
 
 
 
 


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