प्रतीक
प्रतीक
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वह चलती
गिरती
उठती
हाँफती
किसी पेड़ का लेकर सहारा
ठहरती,
रुक जाती
पूछने पर बताती-
मैं जनशक्ति हूँ
इन दिनों क्षीण हो
विश्राम चाहती हूँ
अपने आसपास फैली हुई गंदगी को देखकर
मैं बहुत ऊब गयी हूँ
मैं अगर एक हो जाऊँ तो क्या से क्या कर दूँ
लेकिन नहीं, आज मेरी परिभाषा उलट गयी है
शक्ति होकर भी
अब मैं
दुर्बलता का प्रतीक बन गयी हूँ
मुझे तुम्हारा सहारा चाहिऐ ...
इतना कहकर उसने पीछे मुड़कर देखा
कि वह उसे छोड़कर चल दिया है !