कविता
कविता
एकान्त प्रकृति का साहचर्य पाकर
प्रेम, मिलन, विछोह, वैराग्य, ओज
संवेदनाओं को मुखरित करती।
कुंठा, नैराश्य, आक्रोश को
कलम से धार देती,
नकारात्मक प्रवृत्तियों की अवशोषक।
शब्द रूपी सितारों की आकाशगंगा
अपने आप में समेटे
भावनाओं का महासागर।
कभी लयबद्ध तो कभी मुक्त,
अजस्र बहती सरिता
मचलती चंचल नवयौवना
मानव की भाषा रुपी पहचान
वाग्देवी की सहचरी।
हे शाश्वत कविता!!!
दिगदिगंत में सर्वदा व्याप्त रहे
तुम्हारी पवित्र सुगंध।।