घर
घर
वो ख़्वाहिशों की बात करते है
हम तो सपने छोड़ आए है
कैसे बतायें आपको, कुछ अपने है मेरे
जिन्हें हम घर छोड़ आयें है।
ना सिर्फ़ माँ का प्यार या पापा की डाँट
हम तो बहन संग मीठी तकरार छोड़ आयें है
रहती थी चाहत भी जहाँ लड़ाइयों में
हाँ यारों, हम वो अपना घर छोड़ आयें है।
दोस्त तो यहाँ भी बहुत मिलें
कुछ रहे कुछ बिछड़ गये
पर वहाँ तो अपने भाई छोड़ आयें है
क्या बतायें कैसे, हम अपना घर छोड़ आयें है।
गाड़ी है ख़ुद की, कमरे में अलग से बिस्तर भी है
पर याद तो वही आते हैं
जिन तकियों को हम फ़र्श पर छोड़ आयें है
चैन से आती थी नींद जहाँ
हाँ, हम वो अपना घर छोड़ आयें है।
ख़ुशियाँ जहाँ सीधा दिल को दस्तक देती थी
कभी हँसी में तो कभी आँसूओ में बस्ती थी
ना गली ना मोहल्ला
हम वो अपना शहर छोड़ आयें है
क्या बतायें कैसे, हम तो अपना घर छोड़ आयें है।