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Mona Sharon

Inspirational

4.7  

Mona Sharon

Inspirational

हिन्दुस्मान

हिन्दुस्मान

1 min
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हम दो सच्चे दोस्त  थे,

अच्छे अच्छे दोस्त थे।

मेरी हर मुश्किल को आसान करता,

मेरे  हर गम को वो हल्का करता।


उसके साथ पटाके फोड़ने पर मेरी दिवाली होती,

उसको रंग लगाने से मेरी होली होती,

उसके साथ ही दर्गा की ज़ियारत होती  

गले जब उसे मिल लूँ तो मेरी ईद होती।


सियासत की अदा ने किया हमको जुदा,

न वो  मुझ पर फ़िदा, न मैं उस पर फ़िदा।

रोज़ याद आ ही जाती थी मेरे यार की मुझे,

कई साल जो चाय साथ में पी थी हमने।


जब सामने से गुज़र होता उसका,

दरवाज़ा बंद कर लेता हूँ मैं।

खिड़की से आहिस्ता

एक नज़र देख ही लेता हूँ मैं।


श्रद्धा में सब अपनी विसर्जन को गए थे

अपनी अश्रद्धा से मैं अकेले ही था घर पर।

अचानक से दर्द उठा मेरे सीने में,

सिवाय उसके नंबर के कुछ न याद था मुझे।


तड़पती हुई आवाज़ से कहा उसको

आआआजजज्जजजआआआआआआआ।

नमाज़ पढ़कर आया वो जुमा का दिन था,

सीधा गया अस्पताल  लेकर मुझे।


कहां की मेरे दोस्त को कुछ न होने देना,

जिगरा है मेरा, पैसो की फ़िक्र न करना।

आंसू भर आये मेरी आंख में,

ज़ोर से जब उसने लिपटाया मुझे।


सफ़ेद कपड़े टोपी में लगा कोई 

फरिश्ता मेरे पास आया।

कहाँ दबी आवाज़ में 

शुक्रिया मुझे बुलाने का।


एहसास हुआ मुझे, वो तो मेरा अज़ीज़ था 

कितने दिल के खरीब था ।

जिसे मैंने मुसलमान समझा 

वो तो एक इंसान निकला।


खो दिया होता अपनी आन व मान,

वो न होता तो बचती न मेरी जान।

कहा मैंने उसे, न हिन्दू न मुस्लमान,

हम तो है हिन्दुस्मान ।  


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