नदी से बच कर मैं चली थी
नदी से बच कर मैं चली थी
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नदी से बच कर.
मैं चली थी,
और राह उफनता,
समन्दर निकला ।
समझ ना पायी,
कैसे जाऊँ,
मंझधार में कोई,
द्वीप किनारा निकला ।
नदी से बचकर,
मैं चली थी,
और राह उफनता,
समन्दर निकला ।
उफनते गिरते लहरों में,
मांझी तो बहुत मिले,
पर कोई मीत ना निकला ।
इस गरजते बरसते सफर में,
हमराही तो बहुत मिले,
पर कोई तुम-सा,
प्रीत ना निकला ।
नदी से बच कर,
मैं चली थी और,
राह उफनता,
समन्दर निकला ।