शादी एक समझौता (झलक उत्तर प्रदेश की)
शादी एक समझौता (झलक उत्तर प्रदेश की)
लो कर लिया समझौता हमने भी इस समाज से।
जहाँ बिक जाती हैं लड़कियाँ रिती रिवाज के नाम से।।
पहले तो मजबूरी कि छोड़ दो अस्तित्व अपना।
और चलो बसाने दूसरों की दुनिया जी जान से।।
तोड़ दिये सपने सारे मैं ठहरी नन्ही सी चींटी।
पहाड़ जैसी जिम्मेदारी और रिश्ते सब अनजान से।।
मैं हूँ ऐसे पेड़ की डाली जो काट दिये समाज ने।
कर लिया समझौता बेटी बहू और मां के नाम से।।
जब जाते बाजारों में तो चुनते हैं एक वस्तू हजारों में।
बात शादी की थी तो क्यों चुना बस एक ख्यालों से।।
बस एक दहेज के नाम पर बेच दिया लोगों ने उसे।
कैसे भूल जाते हैं शादी हैं जीवनसाथी के नाम से।।
बीत गये दिन हो गए पराए जन्मदाता भी मेरे।
तुम भी भूल गए फर्ज अपने क्यों ऐ साथी मेरे।।
बेटी थी महलों की पर अब हूँ कुलवधू तुम्हारी।
अर्पण कर दिया सब कुछ बस सात फेरे के नाम से।।
लो कर लिया समझौता हमने भी इस समाज से।