सिसकता बचपन
सिसकता बचपन
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कुम्लाया है बचपन, आंखों में नमी है!
पापा कहीं हैं और मम्मी कहीं है!
खिलौनों से खेलकर खुद खिलौना बन गया है
एक-एक बूँद प्यार को तरस गया है
भरा-भरा है घर, सुकून की कमी है
देकर मंहगे गेजेटस, छुपाते है मुँह को
कमाते है लाखों, बस माँ! के दूध की कमी है!
लोरी सुनाकर सुलाने का रिवाज बंद हो गया है
कौन जाने कहाँ दादी के किस्स और कहानी है!