अंतस की पीड़ा
अंतस की पीड़ा
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बंद दरवाज़ों पे चलकर
ठिठक जाना अक्सर
तुम आते हो मेरे साथ
द्वार खटखटाकर
भीतर भीतर
रंग बनाते हो फिर
उन दीवारों के नये
दरारों को भी
ठीक कर जाते हो
अचानक आईने में आकर
सहम से जाते हो
मेरा अक्स देखकर
डर से जाते हो
मेरा अक्स इतना कुरूप जो है
तुम आये थे जब
मुझमें किसी और का
वजूद लेकर
शायद इसलिए मेरा अक्स देख
घबरा गए हो...
द्वार पीछे खुला हुआ है
मैं आई हूँ अब अंतस में
तुम कदम पीछे कर अपने
जाते हो तो जाओ
तुममें ढूंढा है अंतस को
अब तुमसे ही
"अंतस की पीड़ा"