मितवा मेरे
मितवा मेरे
फूलों से पौधों से कर ली दोस्ती मैंने,
बन गए पेड़-पौधे मन के मितवा मेरे।
इन बहारों को सलाम उन बयारों को सलाम,
नजारों को सलाम उन करिश्मों को सलाम।।
लाल पीले हरे नीले अनगिनत रंग,
खो गई रंगीन क्यारियों में तेरे संग।
जगाई आरजू जगाई उमंगें मन में,
खिल गई मेरी आरजू इस जंग में।।
भूल गई आभूषण की गरिमा की झंकार,
कभी नूपुर ध्वनि कभी कंकण ध्वनि।
बरसता सप्तसुरों का हरदम नजारा,
छेड़ते बेमौसम फूलों के डंकमनी।।
वृंदावन खिला-खिला उमंगों का,
नजराना पुलकित होता रोम-रोम।
काँटों-भरे जख्मों को संवारा,
हौले-हौले स्वैस्वैर पवन ने।।
आरजू जगाई लताओं की सरगम,
बन गया शीतल झरना मेरा तन मन।
संवारा धीरे-धीरे होने लगी मैं,
रंगबिरंगे भंवरों से मन ही मन तरंग।।
विभिन्न स्पर्शों से मिला साक्षात्कार,
अनेक अक्षरों में होने लगी मैं दंग।
खुशियाँ मिली दामन भरता रहा,
आनंद के क्षणों में भूल गई जंग।।
बीत गईं सदियाँ मिली मुझे खुशियाँ,
पल पल की बेमिसाल फूलों से।
बरसे मुझ पर खिलेखिले रंग,
बसी मेरी दुनिया कली कंवल से।।