माँ
माँ
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भावनाएं जब बह निकलती,
तोड़ कर हर बाँध को,
मौन...
स्वर बन स्फुटित करता -
अनकहे उद्गार को
शिशु की उँगली पकड़कर
जो बचाती चोट से...
देखकर पीड़ा उसी की...
व्यथित होती क्षोभ से...
डैनों में हरदम संजोकर
उम्र भर पाला जिसे...
भेजकर परदेस...
अश्रु बह चले सन्देश ले...
नीड़ अपना जा सजाना,
प्रेम और विश्वास पर...
जो अडिग, अक्षय होकर
झेले झंझावात को...
सच तो यह है,
आह भी हलकी सी उठती है जहाँ
माँ का दिल ढाल बनकर ...
हो खड़ा जाता यहाँ!
यह सभी संकेत माँ के
प्रेम का प्रतिरूप हैं
जिसकी महिमा ...जिसकी शक्ति से
सभी अभिभूत हैं!!