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यादों का अस्ताचल

यादों का अस्ताचल

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अतीत की यादों से सराबोर 

कुछ बिछड़े पलछिन 

स्मृतियों की संदूक से निकलकर 

अंगड़ाई लेते सुस्ताते 

दिल की गलियों में भटकते हैं..!


अब बीती कुछ यादें,

भूला हुआ कोई वादा

सिसकियाँ लेती तन्हाई 

रात भर दोहराती है 

एक शख़्स से हुए इश्क की दास्ताँ..!


रात के हर पहर जड़ी लगाते

एक मौसम यादों का 

बेशुमार बरसात है

अश्कों के आबशार में

नहा कर घुलते हैं अहसास

रोम-रोम जगते हैं

मुरझाई यादों के फूल..!


यादों की उष्मा से परे 

मिट्टी सा मन पिघल कर

बहकर ठहर जाता है

उस मोहब्बत की गली के मोड़ पर 

मुँह मोड़ गया था

जहाँ से कोई कभी ना मुड़ने के लिए।


अतीत का अस्ताचल डूबता क्यूँ नहीं

किसके चले जाने के साथ ही।


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